त्वचा की कान्ति बढ़ाये सौंफ
गुण : सौंफ ज्वर, वात, कफ, घाव, दर्द आदि का शमन करनेवाली, तीक्ष्ण, पित्तकारक तथा नेत्रों के लिए हितकारी है। रुचिकर, मधुर रस से युक्त, शीतवीर्य और स्निग्ध है। यह दाह और रक्तपित्त को नष्ट करनेवाली है ।
इसका अर्क रुचि बढ़ानेवाला, जठराग्नि तेज करनेवाला, चरपरा, शीतल, पाचक और मधुर होता है तथा प्यास, उल्टी, जी मिचलाना, पित्त व दाह को नष्ट करनेवाला है । इसका सेवन करने से त्वचा का रंग साफ होता है ।
मस्तिष्क की शीतलता के लिये :
सौंफ, मिश्री और छोटी इलायची के दाने इन तीनों को समभाग में लेकर बारीक चूर्ण करें । सुबह-शाम १-१ चम्मच चूर्ण पानी या दूध के साथ सेवन करने से शरीर और मस्तिष्क में ताजगी व तरावट रहती है ।
घमौरियाँ ( छोटी फुन्सियाँ )
ग्रीष्म ऋतु में प्रायः पीठ के ऊपर घमौरियाँ हो जाती हैं । ५०ग्राम सौंफ कूटकर पानी के भरे बर्तन में डाल दें व प्रातः इसी पानी से स्नान करें । सौंफ को पानी में पीसकर उसका लेप पीठ पर लगाने से घमौरियाँ शीघ्र ही ठीक हो जाती हैं ।
नेत्रज्योति के लिए
सौंफ व मिश्री १-१ चम्मच सोते समय फाँककर खाने से नेत्रज्योति बढ़ती है । ५- ६ माह तक इसका नियमित सेवन करना चाहिए ।
कब्ज दूर करने में सहायक
एक चम्मच सौंफ का चूर्ण और २-३ चम्मच गुलकंद प्रतिदिन दोपहर के भोजन के कुछ समय पश्चात लेने से कब्ज दूर होने में सहायता मिलती है ।
त्वचा की कांति के लिए
१०-१० ग्राम सौंफ सुबह - शाम खूब चबा -चबाकर नियमित रूप से खाने से त्वचा कांतिमय बनती है । गर्भवती स्त्री यदि पूरे गर्भकाल में सौंफ का सेवन करे तो शिशु गोरे रंग का होता है । साथ ही जी मिचलाना, उल्टी होना, अरुचि जैसी शिकायतें नहीं होतीं और रक्त शुद्ध होता हैं ।
५० ग्राम सौंफ लेकर थोड़ा कूट लें । उसे एक गिलास उबलते हुए पानी में डालें व उतार लें और ढककर ठंडा होने के लिए रख दें । ठंडा होने पर उसे मसलकर छान लें । इसका एक चम्मच पानी १-२ चम्मच दूध मिलाकर दिन में ३ बार शिशु को पिलायें । इससे उसको पेट फूलना, दस्त, अपच, मरोड़, पेटदर्द आदि उदरविकार नही होते हैं । दाँत निकलते समय सौंफ का यह पानी शिशु को अवश्य पिलाना चाहिए । इससे वह स्वस्थ रहता है।