KavyaGunjan - Naari Mahima
जागो निद्रा से भारत की ललनाओं
नारी महिमा
प्रभु सत्ता की प्रबल शक्ति अति, मानवता का अतुल विकास |
पूर्ण विश्व की जन्मदायिनी, विधि-संसृति का सफल प्रयास ||
देवगणों की वन्दनीय नित, हरि की एकमात्र छाया |
नारी की सत्ता इस जग में नारी की ही है माया ||
शेष, महेश, विष्णु, विधि, नारद, इंद्र, धर्म गुण गाते हैं |
वेद, पुराण, शास्त्र, स्मृतिगण सब महिमा अमित सुनाते हैं ||
नारी के सतीत्व की गरिमा ही भारत का गौरव है |
भोग्या मानकर दुःख देने पर नारी ही ध्रुव रौरव है ||
श्रवण-सरीखे पितृभक्त, औ लक्ष्मण-जैसे महायती |
भीष्म - सदृश भीषणप्रतिज्ञ, औ हरीशचन्द्र से सत्यव्रती ||
राम, कृष्ण, हनुमान, भरत, अर्जुन औ भीम-युधिष्ठिर को |
नारी ने ही जन्म दिया था ध्रुव, प्रहलाद भक्तवर को ||
सीता, सावित्री, अनुसूया, शकुन्तला औ दमयन्ती |
मदालसा, द्रौपदी, सुकन्या, देवहुती-सी महासती ||
अतुलित कष्ट सहे, पर सत्य न भूली भारत की नारी |
अग्नि परीक्षा अति कठोर दे-देकर वे निखरीं सारी ||
हाय , आज उस नारी गौरव का किंचित भी शेष नहीं |
सद्भावना, सतीत्व-धर्म का अब मिलता नहिं लेश कहीं ||
लज्जा, सहनशीलता, मृदुता, दया, नारि के सद्गुण थे |
आज विलुप्त हुए सारे, जो नारी के आभूषण थे ||
लज्जा को अब दी तिलांजली, धर्म बक्स में बंद किया |
अप-टू-डेट बन निकली घर से कुछ मित्रों को साथ लिया ||
रूप दिखाती, बात बनाती, लाज गँवाती सत-पथ की |
यही सभ्यता है नारी की ? यही शान है भारत की ?||
अभी समय है, जागो निद्रा से भारत की ललनाओं |
धर्म और कर्तव्य सम्भालो, भारत देश की हरषाओ ||
जीवन का है सार यही, निज धर्म विचारो, अपनाओ |
ईश-कृपा का आश्रय करके फिर से आज उसी धर्म का झंडा जग में फहराओ ||
वेदवती शर्मा प्रभाकर
संदर्भ – नारी अंक