भारतीय संस्कृति की पूर्णता का प्रतीकः होलिकोत्सव
होली भारतीय संस्कृति की पहचान का एक पुनीत पर्व है, भेदभाव मिटाकर पारस्परिक प्रेम व सद्भाव प्रकट करने का एक अवसर है । अपने दुर्गुणों तथा कुसंस्कारों की आहुति देने का एक यज्ञ है तथा परस्पर छुपे हुए प्रभुत्व को, आनंद को, सहजता को, निरहंकारिता और सरल सहजता के सुख को उभारने का उत्सव है ।
यह रंगोत्सव हमारे पूर्वजों की दूरदर्शिता है जो अनेक विषमताओं के बीच भी समाज में एकत्व का संचार करता है । होली के रंग-बिरंगे रंगों की बौछार जहाँ मन में एक सुखद अनुभूति प्रकट कराती है वहीं यदि सावधानी, संयम तथा विवेक न रख जाये तो ये ही रंग दुखद भी जाते हैं । अतः इस पर्व पर कुछ सावधानियाँ रखना भी अत्यंत आवश्यक है ।
भारतीय संस्कृति वर्ष भर के त्यौहारों एवं पर्वों की अनवरत श्रृंखला की वैज्ञानिक व्यवस्था करती है। वसंत ऋतु में आनेवाला होली का त्यौहार कूदने-फाँदने एवं प्राकृतिक रंगों से होली खेलने का उत्सव है। इसका स्वास्थ्य पर उत्तम प्रभाव पड़ता है। इन दिनों पलाश के फूलों के रंगों से होली खेलने से शरीर में गर्मी सहन करने की शक्ति बढ़ती है तथा मानसिक संतुलन बना रहता है, साथ ही मौसम-परिवर्तन से प्रकुपित होने वाले रोगों से रक्षा होती है ।
प्राचीन समय में लोग पलाश के फूलों से बने रंग अथवा अबीर-गुलाल, कुमकुम–हल्दी से होली खेलते थे । परंतु वर्तमान में रासायनिक रंगों के अंधाधुंध प्रयोग से विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ पैदा हो रही हैं, जिसकी पुष्टि चिकित्सकों ने भी की है । ये रंग त्वचा पर चकत्तों के रूप में जम जाते हैं । अतः ऐसे रंगों से बचना चाहिये ।
रासायनिक रंगों के दुष्प्रभाव से बचने के घरेलू उपाय –
यदि किसी ने आप पर ऐसा रंग लगा दिया हो तो तुरन्त ही बेसन, आटा, दूध, हल्दी व तेल के मिश्रण से बना उबटन रंगे हुए अंगों पर लगाकर रंग को धो डालना चाहिये । यदि उबटन करने से पूर्व उस स्थान को निंबु से रगड़कर साफ कर लिया जाए तो रंग छुटने में और अधिक सुगमता आ जाती है ।
रंग खेलने से पहले अपने शरीर को नारियल अथवा सरसों के तेल से अच्छी प्रकार मालिश कर लेनी चाहिए । जिससे तेलयुक्त त्वचा पर रंग का दुष्प्रभाव न पड़े और साबुन लगाने मात्र से ही शरीर पर से रंग छूट जाये । रंग आंखों में या मुँह में न जाये इसकी विशेष सावधानी रखनी चाहिए । इससे आँखों तथा फेफड़ों को नुकसान हो सकता है ।
विकृति नहीं प्रकृति का त्यौहार
जो लोग कीचड़ व पशुओं के मलमूत्र से होली खेलते हैं वे स्वयं तो अपवित्र बनते ही हैं दूसरों को भी अपवित्र करने का पाप करते हैं । अतः ऐसे दुष्ट कार्य करने वालों से दूर ही रहें तो अच्छा ।
वर्तमान समय में होली के दिन शराब अथवा भांग पीने की कुप्रथा है । नशे से चूर व्यक्ति विवेकहीन होकर घटिया से घटिया कुकृत्य कर बैठते हैं । अतः नशीले पदार्थ से तथा नशा करने वाले व्यक्तियों से सावधान रहना चाहिये । आजकल सर्वत्र उन्न्मुक्तता का दौर चल पड़ा है । पाश्चात्य जगत के अंधानुकरण में भारतीय समाज अपने भले बुरे का विवेक भी खोता चला जा रहा है । जो साधक है, संस्कृति का आदर करने वाले हैं, ईश्वर व गुरु में श्रद्धा रखते हैं ऐसे लोगो में शिष्टता व संयम विशेष रूप से होना चाहिये । पुरुष सिर्फ पुरुषों से तथा स्त्रियाँ सिर्फ स्त्रियों के संग ही होली मनायें । स्त्रियाँ यदि अपने घर में ही होली मनायें तो अच्छा है ताकि दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों की कुदृष्टि से बच सकें ।
होली मात्र लकड़ी के ढ़ेर जलाने का त्यौहार नहीं है । यह तो चित्त की दुर्बलताओं को दूर करने का, मन की मलिन वासनाओं को जलाने का पवित्र दिन है । अपने दुर्गुणों, व्यसनों व बुराइयों को जलाने का पर्व है होली ……
‘आजकल गुलाल में प्रयोग किये जाने वाले केमिकल, डिटर्जेंट और रेत सिर्फ चमड़ी के लिए ही नहीं बल्कि आँखों, साँस की नली और बालों के लिए भी खतरनाक साबित हो सकते हैं।’ -डा. अनिल गोयल (सीनियर डर्मेटोलिजस्ट) ‘कृत्रिम रंगों में मिले मेलासाइट और माइका जैसे रसायन (केमिकल) साँस की नली, हृदय और गुर्दे (किडनी) जैसे महत्त्वपूर्ण अंगों को नुकसान पहुँचा सकते हैं।’ -डा. आर.एन. कालरा (अध्यक्ष, इंडियन हार्ट फाउंडेशन)
रंगों में प्रयुक्त रसायनों का स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव
पेस्ट |
रसायन |
दुष्प्रभाव |
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काला रंग |
लेड आक्साइड |
गुर्दे की बीमारी |
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हरा रंग |
कॉपर सल्फेट |
आँखों में जलन, सूजन, अस्थायी अंधत्व |
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सिल्वर रंग |
एल्युमिनियम ब्रोमाइड |
कैंसर |
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नीला रंग |
प्रूशियन ब्लू |
‘कान्टेक्ट डर्मेटाइटिस’नामक भयंकर त्वचारोग |
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लाल रंग |
मरक्यूरी सल्फाइट |
त्वचा का कैंसर |
अतः होली खेलें परंतु रासायनिक रंगों से नहीं प्राकृतिक रंगों से, जिन्हें आप घर पर आसानी से बना सकते हैं।
प्राकृतिक रंग बनाने की सरल विधियाँ
केसरिया रंगः पलाश के फूलों से यह रंग सरलता से तैयार किया जा सकता है। पलाश के फूलों को रात को पानी में भिगो दें। सुबह इस केसरिया रंग को ऐसे ही प्रयोग में लायें या उबालकर होली का आनंद उठायें। यह रंग होली खेलने के लिए सबसे बढ़िया है। शास्त्रों में भी पलाश के फूलों से होली खेलने का वर्णन आता है। इसमें औषधिय गुण होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार यह कफ, पित्त, कुष्ठ, दाह, मूत्रकृच्छ, वायु तथा रक्तदोष का नाश करता है। रक्तसंचार को नियमित व मांसपेशियों को स्वस्थ रखने के साथ ही यह मानसिक शक्ति तथा इच्छाशक्ति में भी वृद्धि करता है।
सूखा हरा रंगः मेंहदी या हिना का पाउडर तथा गेहूँ या अन्य अनाज के आटे को समान मात्रा में मिलाकर सूखा हरा रंग बनायें। आँवला चूर्ण व मेंहदी को मिलाने से भूरा रंग बनता है, जो त्वचा व बालों के लिए लाभदायी है।
सूखा पीला रंगः हल्दी व बेसन मिला के अथवा अमलतास व गेंदे के फूलों को छाया में सुखाकर पीस के पीला रंग प्राप्त कर सकते हैं।
गीला पीला रंगः एक चम्मच हल्दी दो लीटर पानी में उबालें या मिठाइयों में पड़ने वाले रंग जो खाने के काम आते हैं, उनका भी उपयोग कर सकते हैं। अमलतास या गेंदे के फूलों को रात को पानी भिगोकर रखें, सुबह उबालें।
लाल रंगः लाल चंदन (रक्त चंदन) पाउडर को सूखे लाल रंग के रूप में प्रयोग कर सकते हैं। यह त्वचा के लिए लाभदायक व सौंदर्यवर्धक है। दो चम्मच लाल चंदन एक लीटर पानी में डालकर उबालने से लाल रंग प्राप्त होता है, जिसमें आवश्यकतानुसार पानी मिलायें।