आध्यात्मिक खजाना भरने का सुवर्णकालः चतुर्मास
चतुर्मास काल देवशयनी एकादशी से प्रारंभ होकर देवउठी (प्रबोधिनी) एकादशी तक माना जाता है ।
चतुर्मास में किया हुआ व्रत, जप, संयम, दान, स्नान बहुत अधिक फल देता है । इन दिनों में स्त्री सहवास करने से मानव का पतन होता है । यही कारण है कि चतुर्मास में शादी-विवाह आदि सकाम कर्म नहीं किये जाते हैं ।
इन चार महीनों में जो ब्रह्मचर्य पालते हैं और धरती पर सोते हैं, उनकी तपस्या और उनका आध्यात्मिक विकास तोल-मोल के बाहर हो जाता है । पति-पत्नी होते हुए भी संयम रखें । किसी का अहित या बुरा सोचे नहीं, करे नहीं तथा ‘मैं भगवान का हूँ, भगवान मेरे हैं और सर्वत्र हैं’ ऐसा नजरिया बना ले तो चार महीने में उसके पाप-ताप मिट जायेंगे और भगवान की शांति, प्रेरणा और ज्ञान यूँ मिलता है !
चतुर्मास व्रत रखने वाले व्यक्ति को एक हजार अश्वमेध यज्ञ करने का फल सहज में ही मिलता है । चतुर्मास में मौन, भगवन्नाम जप, शुभकर्म आदि का आश्रय लेकर हीन कर्म छोड़े और भगवान की स्मृति बढ़ाये हुए धरती पर (दरी या कम्बल बिछाकर) शयन करे अथवा गद्दा-तकिया हटाकर सादे पलंग पर शयन करे और ‘नमो नारायणाय’ का जप बढ़ा दे तो उसके चित्त में भगवान आ विराजते हैं ।
अपना आध्यात्मिक खजाना बढ़ायें
जैसे किसान बुवाई करके थोड़ा आराम करता है और खेत के धन का इंतजार करता है, ऐसे ही चतुर्मास में आध्यात्मिक धन को भरने की शुरुआत होती है । हो सके तो सावन के महीने में एक समय भोजन करे, जप बढ़ा दे । हो सके तो किसी पवित्र स्थान पर अनुष्ठान करने के लिए चला जाय अथवा अपने घर में ही पूजा-कमरे में चला जाय और दूसरी या तीसरी सुबह को निकले । मौन रहे, शरीर के अनुकूल फलाहार, अल्पाहार करे । अपना आध्यात्मिक खजाना बढ़ाये । ‘आदर हो गया, अनादर हो गया, स्तुति हो गयी, निंदा हो गयी…. कोई बात नहीं, हम तो करोड़ काम छोड़कर प्रभु को पायेंगे ।’ ऐसा दृढ़ निश्चय करे । बस, फिर तो प्रभु तुम्हारे हृदय में प्रकट होने का अवसर पैदा करेंगे ।
चतुर्मास में क्या त्यागने से क्या फल ?
- गुड़ के त्याग से मधुरता, तेल(लगाना, मालिश आदि) के त्याग से संतान दीर्घजीवी तथा सुगंधित तेल के त्याग से सौभाग्य की प्राप्ति होती है ।
- असत्य भाषण, क्रोध, शहद और मैथुन के त्याग से अश्वमेध यज्ञ का फल होता है । यह उत्तम फल, उत्तम गति देने में सक्षम है ।
- चतुर्मास में परनिन्दा का विशेष रूप से त्याग करें ।
- परनिन्दा महापापं परनिन्दा महाभयम् ।
- परनिन्दा महद्दुःखं न तस्याः पातकं परम् ।
- परनिन्दा से बड़ा कोई पाप नहीं है । और पाप हो जाने पर प्रायश्चित्त करने से माफ हो जाता है लेकिन परनिन्दा तो जानबूझकर की है, उसका कोई प्रायश्चित्त नहीं है ।
विशेष लाभदायी प्रयोग
आँवला, तिल व बिल्वपत्र आदि से स्नान करे तो वायुदोष और पापदोष दूर होता है ।
- वायु की तकलीफ हो तो बेल-पत्ते को धोकर एक काली मिर्च के साथ चबा के खा लें, ऊपर से थोड़ा पानी पी लें । यह बड़ा स्फूर्तिदायक भी रहेगा ।
- पलाश के पत्तों में भोजन करने से ब्रह्मभाव की प्राप्ति होती है ।
- इन दिनों में कम भोजन करना चाहिए ।
- जल में आँवला मिलाकर स्नान करने से पुरुष तेजवान होता है और नित्य महान पुण्य प्राप्त होता है ।
- एकादशी का व्रत चतुर्मास में जरूर करना चाहिए ।
बुद्धिशक्ति की वृद्धि हेतु
चतुर्मास में विष्णु जी के सामने खड़े होकर ‘पुरुष सूक्त’ का पाठ करने वाले की बुद्धि बढ़ती है (‘पुरुष सूक्त’ की लिंक) । बच्चों की बुद्धि अगर कमजोर हो तो ‘पुरुष सूक्त’ का पाठ भगवान नारायण के समक्ष करवाओ, बुद्धि बढ़ेगी । भ्रूमध्य में सूर्यनारायण का ध्यान करवाओ, बुद्धि बढ़ेगी ।
स्वास्थ्य रक्षक प्रयोग
बारिश के दिनों में धरती पर सूर्य की किरणें कम पड़ती हैं इसलिए जठराग्नि मंद पड़ जाती है और वायु (गैस) की तकलीफ ज्यादा होती है । अतः 50 ग्राम जीरा व 50 ग्राम सौंफ सेंक लें । उसमें 20-25 काला नमक तथा थोड़ी इलायची मिला के पीसकर रख लें । वायु, अम्लपित्त (एसिडिटी), अजीर्ण, पेटदर्द, भूख की कमी हो तो 1 चम्मच मिश्रण पानी से सेवन करें । इसमें थोड़ी सोंठ मिला सकते हैं ।
दीर्घजीवी व यशस्वी होने हेतु
भगवान ब्रह्मा जी कहते हैं-
सद्धर्मः सत्कथा चैव सत्सेवा दर्शनं सताम् ।
विष्णुपूजा रतिर्दाने चातुर्मास्यसुदुर्लभा ।।
‘सद्धर्म (सत्कर्म), सत्कथा, सत्पुरुषों की सेवा, संतों का दर्शन-सत्संग, भगवान का पूजन और दान में अनुराग – ये सब बातें चौमासे में दुर्लभ बतायी गयी हैं ।
(स्कन्द पुराण, ब्रा. खण्ड, चातुर्मास्य माहात्म्यः 3.11)
ये सद्गुण तो मनुष्य को सारे इष्ट दे देते हैं, सारे दुःखों की कुंजियाँ दे देते हैं । इनसे मनुष्य दीर्घजीवी, यशस्वी होता है । जप, सेवा सत्कर्म है, भूखे को अन्नदान करना सत्कर्म है और खुद अन्न का त्याग करके शास्त्र में बताये अनुसार उपवास करना यह तो परम सत्कर्म है ।
सुबह उठकर संकल्प करें
देवशयनी एकादशी को सुबह उठकर संकल्प करना चाहिए कि ‘यह चतुर्मास के आरम्भवाली एकादशी है । पापों का नाश करने वाली यह एकादशी भगवान नारायण को प्रिय है । मैं भगवान नारायण, परमेश्वर को प्रणाम करता हूँ । कई नाम हैं प्यारे प्रभु के । आज के दिन मैं मौन रहूँगा, व्रत रखूँगा । भगवान क्षीर-सागर में कार्तिक शुक्ल एकादशी तक मौन, समाधिस्थ रहेंगे तो इन चार महीनों तक मैं धरती पर सोऊँगा और ब्रह्मचर्य का पालन करूँगा ।’
एक वचन भिक्षा में दे दो
श्रावण मास, चतुर्मास शुरु हो रहा है तो मुझे भिक्षा में एक वचन दे दो कि ‘3,6 या 12 महीने का ब्रह्मचर्य व्रत रखेंगे ।’ भीष्म पितामह, लीलाशाह जी बापू, अर्यमा देव को याद करना, वे आपको विकारों से बचने में मदद करेंगे । ॐ अर्यमायै नमः । इस मंत्र से, प्राणायाम से ब्रह्मचर्य की रक्षा होती है ।
जैसे संसार-व्यवहार से वीर्य नाश होता है, वैसे बोलने से भी वीर्य का सूक्ष्म अंश खर्च होता है, अतः संकल्प करें कि ‘हम मौन रहेंगे, कम बोलेंगे, सारगर्भित बोलेंगे ।’ रूपये पैसों की आवश्यकता नहीं है, इतना भिक्षा में दे दो कि ‘अब इस चतुर्मास में हे व्यासजी ! हे गुरुदेवो ! हे महापुरुषो ! आपकी प्रसादी पाने के लिए इस विकार का, इस गंदी आदत का हम त्याग करेंगे….. ।’