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जप महिमा

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है, यज्ञानाम् जपयज्ञो अस्मि । यज्ञों में जपयज्ञ मैं हूँ । श्री राम चरित मानस में भी आता हैः कलियुग केवल नाम आधारा, जपत नर उतरे सिंधु पारा । इस कलयुग में भगवान का नाम ही आधार है । जो लोग भगवान के नाम का जप करते हैं, वे इस संसार सागर से तर जाते हैं ।


जप अर्थात्…… ज = जन्म का नाश, प = पापों का नाश ।

पापों का नाश करके जन्म-मरण करके चक्कर से छुड़ा दे उसे जप कहते हैं । परमात्मा के साथ संबंध जोड़ने की एक कला का नाम है जप । एक विचार पूरा हुआ और

दूसरा अभी उठने को है उसके बीच के अवकाश में परम शांति का अनुभव होता है । ऐसी स्थिति लाने के लिए जप बहुत उपयोगी साधन है । इसीलिए कहा जाता हैः

         अधिकम् जपं अधिकं फलम् ।

भगवान का नाम क्या नहीं कर सकता ? भगवान का मंगलकारी नाम दुःखियों का दुःख मिटा सकता है, रोगियों के रोग मिटा सकता है, पापियों के पाप हर लेता, अभक्त को भक्त बना सकता है, मुर्दे में प्राणों का संचार कर सकता है ।

भगवन्नाम-जप से क्या फायदा होता है ? कितना फायदा होता है ? इसका पूरा बयान करने वाला कोई वक्ता पैदा ही नहीं हुआ और न होगा ।
नारदजी पिछले जन्म में विद्याहीन, जातिहीन, बलहीन दासीपुत्र थे । साधुसंग और भगवन्नाम-जप के प्रभाव से वे आगे चलकर देवर्षि नारद बन गये । साधुसंग और भगवन्नाम-जप के प्रभाव से ही कीड़े में से मैत्रेय ऋषि बन गये । परंतु भगवन्नाम की इतनी ही महिमा नहीं है । जीव से ब्रह्म बन जाय इतनी भी नहीं, भगवन्नाम व मंत्रजाप की महिमा तो लाबयान है ।

 

भगवन्नाम की महिमा

 

शास्त्र में आता हैः देवाधीनं जगत्सर्वं मंत्राधीनाश्च देवताः ।

‘सारा जगत भगवान के अधीन है और भगवान मंत्र के अधीन हैं ।”

संत चरनदासजी महाराज ने बहुत ऊँची बात कही हैः

श्वास श्वास सुमिरन करो यह उपाय अति नेक ।

 

संत तुलसीदास जी ने कहा है –

  बिबसहुँ जासु नाम नर कहहीं । जनम अनेक रचित अध दहहीं । ।

(श्रीरामचरित. बा.का. 118.2)

‘जो विवश होकर भी नाम-जप करते हैं उनके अनेक जन्मों के पापों का दहन हो जाता है ।’

कोई डंडा मारकर, विवश करके भी भगवन्नाम-जप कराये तो भी अनेक जन्मों के पापों का दहन होता है तो जो प्रीतिपूर्वक हरि का नाम जपते-जपते हरि का ध्यान करते हैं उनके सौभाग्य का क्या कहना !

जबहिं नाम हृदय धरयो, भयो पाप को नास ।

जैसे चिंनगी आग की, पड़ी पुराने घास । ।
 

भगवन्नाम की बड़ी भारी महिमा है ।

यदि हमने अमदावाद कहा तो उसमें केवल अमदावाद ही आया । सूरत, गाँधीनगर रह गये । अगर हमने गुजरात कहा तो सूरत, गाँधीनगर, राजकोट आदि सब उसमें आ गये परंतु मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार आदि रह गये…. किंतु तीन अक्षर का नाम भारत कहने से देश के सारे-के-सारे राज्य और नगर उसमें आ गये । ऐसे ही केवल पृथ्वीलोक ही नहीं, वरन् 14 लोक और अनंत ब्रह्मांड जिस सत्ता से व्याप्त हैं उसमें अर्थात् गुरुमंत्र में पूरी दैवी शक्तियों तथा भगवदीय शक्तियों का समावेश हो जाता है ।
मंत्र भी तीन प्रकार के होते हैं, सात्त्विक, राजसिक और तामसिक ।
सात्त्विक मंत्र आध्यात्मिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए होते हैं । दिव्य उद्देश्यों की पूर्णता में सात्त्विक मंत्र काम करते हैं । भौतिक उपलब्धि के लिए राजसिक मंत्र की साधना होती है और भूत-प्रेत आदि को सिद्ध करने वाले मंत्र तामसिक होते हैं ।

देह के स्वास्थ्य के लिए मंत्र और तंत्र को मिलाकर यंत्र बनाया जाता है । मंत्र की मदद से बनाये गये वे यंत्र भी चमत्कारिक लाभ करते हैं । तांत्रिक साधना के बल से लोग कई उपलब्धियाँ भी बता सकते हैं ।
परंतु सारी उपलब्धियाँ जिससे दिखती हैं और जिससे होती हैं – वे हैं भगवान । जैसे,भारत में देश का सब कुछ आ जाता है ऐसे ही भगवान शब्द में,ॐ शब्द में सारे ब्रह्मांड सूत्रमणियों के समान ओतप्रोत हैं । जैसे, मोती सूत के धागे में पिरोये हुए हों ऐसे ही ॐसहित अथवा बीजमंत्रसहित जो गुरुमंत्र है उसमें ‘सर्वव्यापिनी शक्ति’ होती है ।

कोई मनुष्य दिशाशून्य हो गया हो, लाचारी की हालत में फेंका गया हो, कुटुंबियों ने मुख मोड़ लिया हो, किस्मत रूठ गयी हो, साथियों ने सताना शुरू कर दिया हो, पड़ोसियों ने पुचकार के बदले दुत्कारना शुरू कर दिया हो… चारों तरफ से व्यक्ति दिशाशून्य, सहयोगशून्य, धनशून्य, सत्ताशून्य हो गया हो फिर भी हताश न हो वरन् सुबह-शाम 3 घंटे ओंकार सहित भगवन्नाम का जप करे तो वर्ष के अंदर वह व्यक्ति भगवत्शक्ति से सबके द्वारा सम्मानित, सब दिशाओं में सफल और सब गुणों से सम्पन्न होने लगेगा । इसलिए मनुष्य को कभी भी लाचार, दीन-हीन और असहाय मानकर अपने को नहीं कोसना चाहिए । भगवान तुम्हारे आत्मा बनकर बैठे हैं और भगवान का नाम तुम्हें सहज में प्राप्त हो सकता है फिर क्यों दुःखी होना ?

इस शक्ति का पूरा फायदा उठाने के इच्छुक साधक को दृढ़ इच्छाशक्ति से जप करना चाहिए । मंत्र में अडिग आस्था रखनी चाहिए । एकांतवास का अभ्यास करना चाहिए । व्यर्थ का विलास, व्यर्थ की चेष्टा और व्यर्थ का चटोरापन छोड़ देना चाहिए । व्यर्थ का जनसंपर्क कम कर देना चाहिए ।
सतत भगवन्नाम-जप और भगवच्चिंतन विशेष हितकारी है । मनोविकारों का दमन करने में, विघ्नों का शमन करने में और दिव्य 15 शक्तियाँ जगाने में मंत्र भगवान गजब की सहायता करते हैं ।

 

बार-बार भगवन्नाम-जप करने से एक प्रकार का भगवदीय रस, भगवदीय आनंद और भगवदीय अमृत प्रकट होने लगता है । जप से उत्पन्न भगवदीय आभा आपके पाँचों शरीरों (अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय) को तो शुद्ध रखती ही है, साथ ही आपकी अंतरात्मा को भी तृप्त करती है । शरीर छूटने के बाद भी जीवात्मा के साथ नाम का संग रहता ही है । नामजप करने वाले का देवता लोग भी स्वागत करते हैं । इतनी महिमा है भगवन्नाम जप की !

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