पहले साइंस या पहले ईश्वर ?
एक दिन श्रीरामकृष्ण परमहंस के दर्शन हेतु प्रसिद्ध विद्वान बंकिमचन्द्र चटर्जी पधारे थे । रामकृष्ण जी ने भक्तों को उपदेश देते हुए कहाः “कोई-कोई समझते हैं कि बिना शास्त्र पढ़े अथवा पुस्तकों का अध्ययन किये ईश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता । वे सोचते हैं, ‘पहले जगत के बारे में, जीव के बारे में जानना चाहिए, पहले साइंस पढ़ना चाहिए ।’ वे कहते हैं कि ‘ईश्वर की यह सारी सृष्टि समझे बिना ईश्वर को जाना नहीं जाता ।’ तुम क्या कहते हो ? पहले साइंस या पहले ईश्वर ?”
बंकिम बाबूः “जी हाँ, पहले जगत के बारे में दस बातें जान लेनी चाहिए । थोड़ा इधर का ज्ञान हुए बिना ईश्वर को कैसे जानूँगा ? पहले पुस्तक पढ़कर कुछ जान लेना चाहिए ।”
रामकृष्ण जीः “यह तुम लोगों का एक ख्याल है । वास्तव में पहले ईश्वर, उसके बाद सृष्टि । ईश्वर को प्राप्त करने पर आवश्यक हो तो सभी जान सकोगे । उन्हें जान लेने पर सब कुछ जाना जा सकता है परंतु फिर मामूली चीजें जानने की इच्छा नहीं रहती । वेद में भी यही बात है । जब किसी व्यक्ति को देखा नहीं जाता तब उसके गुणों की बातें बतायी जा सकती हैं, जब वह सामने आ जाता है, उस समय वे सब बातें बंद हो जाती हैं । लोग उसके साथ ही बातचीत करते हुए तल्लीन हो जाते हैं, मस्त हो जाते हैं । उस समय दूसरी बातें नहीं सूझतीं ।
पहले ईश्वर की प्राप्ति, उसके बाद सृष्टि या दूसरी बातचीत । एक को जानने पर सभी जाना जा सकता है । एक के बाद यदि पचास शून्य रहें तो संख्या बढ़ जाती है । एक को मिटा देने से कुछ भी नहीं रहता । एक को लेकर ही अनेक हैं । पहले एक, उसके बाद अनेक, पहले ईश्वर, उसके बाद जीव-जगत ।
ईश्वरप्राप्ति के लिए यही असली बात है
ईश्वर से व्याकुल होकर प्रार्थना करो । आंतरिक प्रार्थना होने पर वे अवश्य सुनेंगे । गुरुवाक्य में विश्वास करना चाहिए । गुरु ही सच्चिदानंद, सच्चिदानंद ही गुरु हैं । उनकी बात पर बालक की तरह विश्वास करने से ईश्वरप्राप्ति होती है । सयानी बुद्धि, हिसाबी बुद्धि, विचार बुद्धि करने से ईश्वर को प्राप्त नहीं किया जा सकता । विश्वास और सरलता होनी चाहिए, कपटी होने से यह कार्य न होगा । सरल के लिए वे बहुत सहज हैं, कपटी से वे बहुत दूर हैं ।
बालक जिस प्रकार माँ को न देखने से बेचैन हो जाता है, लड्डू, मिठाई हाथ पर लेकर चाहे भुलाने की चेष्टा करो पर वह कुछ भी नहीं चाहता, किसी से नहीं भूलता और कहता हैः ‘नहीं, मैं माँ के पास ही जाऊँगा’, इसी प्रकार ईश्वर के लिए व्याकुलता चाहिए । अहा ! कैसी स्थिति ! – बालक जिस प्रकार ‘माँ-माँ’ कहकर तन्मय हो जाता है, किसी भी तरह नहीं भूलता । जिसे संसार के ये सब सुखभोग फीके लगते हैं, जिसे अन्य कुछ भी अच्छा नहीं लगता, वही हृदय से ‘माँ-माँ’ (काली माँ या ईश्वर वाचक सम्बोधन) कहकर कातर होता है । उसी के लिए माँ को फिर सभी कामकाज छोड़कर दौड़ आना पड़ता है । यही व्याकुलता है । किसी भी पथ से क्यों न जाओ, यह व्याकुलता ही असली बात है ।”
7 thoughts on “पहले साइंस या पहले ईश्वर ?”
Hariom bapuji pyareji mereji jogiji 🕉️🚩
tikeshnarayansahu@gmail.com
Pahle eshwar
bilkul sahi kaha
true
Sadho sadho sadho🌸🙏🌸🌸🙏
absolutely correct