रूपनगढ़ की राजकुमारी
रूपनगढ़ के राजा विक्रमसिंह की बेटी का नाम था चंचला । एक दिन चित्र बेचने वाली एक मुसलमान महिला राजमहल में चित्र लेकर आई और सब को दिखाने लगी । उसके द्वारा दिखाए गए चित्रों में शाहजहाँ अकबर, महाराणा प्रताप आदि के चित्र थे । आखिर में जब उसने औरंगजेब का चित्र दिखाया तो चंचला अपनी सखियों के साथ हंसने लगी । हंसी-हंसी में चित्र जमीन पर गिरकर टूट गया ।
मुसलमान महिला ने कहा ”शहंशाह के चित्र का इतना अपमान किया गया है, यह अच्छा नहीं हुआ बादशाह औरंगजेब को उसका पता चलेगा तो रूपनगढ़ की एक ईट भी नहीं बचेगी” ।
राजकुमारी यह सुनकर भड़क उठी और बोली: “जो मंदिर तुड़वाता है, हिंदुओं पर जुल्म करता है उसको तो जूते मारने चाहिए ।” फिर चित्र का दाम देकर उसने अपनी सहेलियों से कहा: “सब बारी-बारी से इस चित्र पर एक एक लात मारो ।” सहेलियों में आदेश का पालन किया । उस मुसलमान महिला ने यह बात बेग़मों के मारफत (द्वारा) औरंगजेब तक पहुंचा दी ।
उसे सुनकर औरंगजेब आग बबूला हो उठा । वह तो हिंदू राजाओं को तहस-नहस करने का बहाना ही ढूंढा करता था । उसने उसी क्षण अपने सेनापति को आदेश दिया: ‘सेनापति ! जाओ, उस राजकुमारी चंचला के बाप से कहो उसे सजाकर डोली में भेज दे, मैं उसको अपनी औरत बनाऊँगा । अगर ना बोलता है तो रूपनगढ़ को चारों ओर से घेरकर मिट्टी में मिला दो और चंचला को जबरदस्ती डोली में बिठाकर ले आओ ।’
पिता ने चंचला से कहा : “अब औरंगजेब के यहाँ चली जा, तू उधर सुखी रहेगी और मेरा राज्य भी बच जाएगा ।”
चंचला ने कहा : “पिताजी ! यह आपने क्या सोचा ? पवित्र राजपूत कुल में जन्म लेकर मैं मुगलानी बनूँगी ?”
“बेटी ! मेरा राज्य छोटा है और औरंगजेब की सेना की तुलना में मेरी सेना भी कम है, अगर मैं विरोध करुँगा तो भी वह तुम्हें बलपूर्वक ले जाएगा, इस व्यर्थ के सर्वनाश से बचने के लिए ही मैं ऐसा कह रहा हूँ ।”
चंचला ने सोचा कि ‘पिताजी के पास शक्ति नहीं है और मैं उस पापी के पास जाना नहीं चाहती हूँ, केवल मेरे कारण मेरे पिताजी और प्रजा का बलिदान हो या ठीक नहीं है, अब क्या करुँ ?’
वह अपने पूजाकक्ष में चली गई और प्रभु से प्रार्थना करने लगी कि ‘तुम राजाओं के राजा हो, स्वामियों के स्वामी हो, औरंगजेब की हस्ती तुम्हारे आगे क्या मायने रखती है ? तुम ही मुझे प्रेरणा दो कि मैं क्या करूँ ? इस प्रकार प्रार्थना करते-करते वह शांत हो गई, उसे भीतर से प्रेरणा हुई और उसने अपने पिताजी से कहा:
“अगर मैं मना करूँगी तो पूरे राज्य का बलिदान देना पड़ेगा, अतः आप औरंगजेब से बोल दो कि सैनिक फलाने तिथि को आकर चंचला को ले जाये ।”
औरंगजेब को समाचार दे दिया गया । उसने सोचा कि ‘बिना युद्ध के ही आ रही है ठीक है’, वह उस तिथि की राह देखने लगा ।
इधर चंचला ने महाराणा प्रताप के वंशज उदयपुर के राजा राजसिंह को पत्र लिखा कि मैंने इस प्रकार औरंगजेब के चित्र का अपमान किया तो उसका बदला लेने वह मुझे बुला रहा है । महाराणा ! आप राजपूतों के गौरव हैं । आपके पूर्वजों ने धर्मरक्षा के लिए सर्वस्व न्योछावर कर दिया था । विपत्ति में पड़ी एक राजपूत बालिका आपकी शरण में है । धर्म तथा राजपूतों की आन के रक्षक क्या विपत्ति में पड़ी बालिका की रक्षा ना करेंगे ? मेरे लिए इससे बड़ी विपत्ति और क्या होगी कि मेवाड़ के अधिपति के जीवित रहते मैं, एक राजपूत कन्या, अनिक्षा से मुग़ल बादशाह की बेगम बनायी जाऊँगी ? भुजाओं में शक्ति ना हो तो रहने दीजिये । दुराचारी यवनों से रक्षा करने में यदि आप कायर हो जायेंगे तो विष मेरे पास है । मैं अपनी रक्षा आप कर लूँगी ।”
एक विश्वस्त घुड़सवार के द्वारा उसने यह पत्र राजसिंह तक पहुँचा दिया ।
पत्र पढ़कर राजसिंह ने जवाब भिजवाया, “राजकुमारी ! प्रताप के इस वंशज में अभी उनका रक्त है । आप निश्चिंत रहें ।”
निश्चित तिथि पर औरंगज़ेब के सैनिक आये । चंचला डोली में बैठी । औरंगज़ेब के सैनिक चंचला को दिल्ली की ओर ले जा रहे थे । मार्ग में पर्वतीय इलाक़े में राजसिंह की सेना ने मुग़ल सेना का डटकर मुक़ाबला किया । मुग़ल सेना तितर-बितर होकर भाग गयी ।
राजसिंह ने राजकुमारी चंचला से कहा, “राजकुमारी ! आप चाहें तो हम आपको रूपनगढ के राजमहल तक छोड़ आयें ।”
चंचला: “नहीं महाराज ! पिताजी तो मुझे मुग़ल बादशाह को देने जा ही रहे थे । अब पिता के पास जाऊँगी तो औरंगज़ेब फिर से जुल्म करेगा । आप जैसे वीर के साथ मेरे जीवन का रिश्ता हो – ऐसी मैं प्रार्थना करती हूँ ।”
राजसिंह ने कहा : “मैंने आपकी मदद की इसका मतलब यह नहीं है कि मैं आपको अपनी पत्नी ही बनाऊँ । अगर आपकी इच्छा है और आपके पिता की सहमति है तो मेरा द्वार आपके लिए खुला है । आप मेवाड़ की महारानी बन सकती हैं ।”
चंचला के पिता सहमत हुए और चंचला मेवाड़ की महारानी बन गयी । अपने धर्म की रक्षा के लिए कैसी युक्ति खोज निकाली चंचला ने ! एक मुग़ल की बेगम बनने से बचा लिया अपने-आपको ।
जीवन में कैसी भी विपत्ति आ जाये किंतु जो मनुष्य घबराता नहीं है वरन् शांतिपूर्वक मार्ग ढूँढता है, उसे सही मार्ग वह परमात्मा दिखा ही देता है ।
अतः विपरीत परिस्थिति में भी धैर्य ना खोयें वरन् प्रभु से प्रार्थना करें तो वह सबका रक्षक, सर्वसमर्थ परमात्मा आपको सही प्रेरणा देकर विपत्ति से उबार लेगा ।
1 thought on “रुपनगढ़ की राजकुमारी”
बहुत ही प्रेरणादायी कहानी है। आप सभी महिला उत्थान मंडल की बहनों को बहुत बहुत धन्यवाद देते हैं कि आप इतनी अच्छी कहानियों को हम महिलाओं तक पहुंचाने की सेवा करते हैं,इन्हें पढ़कर हमारा आत्मबल बढ़ता है। धन्य है आप सभी की गुरु सेवा।
संत श्री आशाराम जी बापूजी की जय हो।
🙏🏻