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Mahila Utthan Mandal

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संयमी सोनबा

धृति अर्थात् धैर्य के तीन प्रकार हैं – तामसी धृति, राजसी धृति और सात्त्विक धृति । जो पापी, अपराधी, चोर, डकैत होते हैं वे भी धैर्य रख के अपने कर्म को अंजाम देने में सफल हो जाते हैं, यह ʹतामसी धृतिʹ है ।

जो राजसी व्यक्ति हैं वे भी ठंडी-गर्मी सह के, धन-सत्ता बढ़ा के, अहंकार पोसकर गद्दी, कुर्सी के लिए धैर्य रखते हैं, यह ʹराजसी धैर्यʹ है ।

तीसरे होते हैं सात्त्विक धैर्यवान । वे परमात्मा में विश्रांति पाने के लिए चल पड़ते हैं । साधन-भजन, परोपकार करते हैं, मान-अपमान आता है तो धैर्य रखते हैं । सफलता-विफलता में विह्वल होकर अपने आत्मा-परमात्मा को पाने का उद्देश्य नहीं छोड़ते और कठिनाइयों से भी डरते नहीं हैं, अपने उद्देश्य में डट जाते हैं ।

बाल या यौवन काल में जिनके जीवन में सत्संग आ जाता है, उनके जीवन में भगवान की धृतिशक्ति सात्त्विक रूप में चमकती है । जिसके जीवन में यह सात्त्विक धृति आती है, उसकी प्रज्ञा ठीक काम करने लगती है । वह छोटे से छोटा, लाचार से लाचार अकेला व्यक्ति तो क्या कन्या भी महानता का इतिहास रच डालती है ।

सात्त्विक धृति के धनी व्यक्ति के ऊपर कैसी भी आफतें आ जायें, वह अपनी वर्तमान अवस्था में ही ऊपर उठता है । ʹमेरा भाग्य ऐसा है अथवा बाद में ऐसा होगाʹ , नहीं… अभी से ही । उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम का धृतिपूर्वक सदुपयोग करके छोटे से छोटे व्यक्ति भी महान हो गये, जैसे – शबरी भीलन ।

जिस मनुष्य के जीवन में सात्त्विक धृति है, यदि वह ठान ले तो इतिहास का देदीप्यमान मार्गदर्शक बन सकता है, फिर वह चाहे कोई बेचारी अबला कन्या क्यों न हो, बड़े-बड़े तीसमारखाँओं को दिन में तारे दिखा सकती है।

आज सोनगढ़ इलाके का ʹवावʹ गाँव कन्या सोनबा की धृति की गवाही दे रहा है । सोनबा के पिता का नाम था मोकल सिंह । भावनगर जिले में सोनगढ़ के नजदीक एक छोटा सा गाँव था । सेंदरड़ा । एक दिन वह साहसी कन्या कहीं जा रही थी । उसे घुड़सवारी का शौक था । उसने देखा कि सामने से यवन सैनिकों का टोला आ रहा है और सूबेदार मेरे पर बुरी नजर डालता हुआ नजदीक आ रहा है । उस युवती ने आँखें अँगारे उगलें ऐसे ढंग से उसके सामने देखा लेकिन वह भी तो सूबेदार था, जूनागढ़ का सर्वेसर्वा !

सूबेदार ने कहाः “अरे सुन्दरी ! तेरे जैसी सुंदरी तो मेरी बेगम बनने के काबिल है । आ, तू मेरे महल में रहने के काबिल है ।”

ऐसी गंदी-गंदी बातें सुनायीं कि सोनबा का खून खौलने लगा । उसने कहाः “हे दुर्बुद्धि दुष्ट ! सँभल के बात कर । तेरे दिन पूरे होने को हैं इसलिए तू मेरे ऊपर बुरी नजर डाल रहा है । तेरी आँखें निकाल के कौवों को दे दूँगी । तेरे साथ सेना है लेकिन मेरे साथ गुरु के वचन हैं । उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति, पराक्रम – ये छः सदगुण जिसके पास होते हैं, उस पर कदम-कदम पर परमात्मा कृपा बरसाता है । अगर तू अपनी जान बचाना चाहता है तो यह बकवास बंद कर, तू अपने रास्ते जा और मैं अपने रास्ते जा रही हूँ ।”

“अरे बिहिश्त की परी ! तेरे जैसी सुंदरी और वीरांगना को हम अपनी खास पटरानी बनायेंगे । तुम अब हमारे हाथ से नहीं जा सकती चिड़िया ! सैनिको ! घेर लो इस सुन्दरी को ।”

सोनबा ने देखा कि ये सैनिक मुझे घेरेंगे और यह दुष्ट मनचाहा आचरण करके मुझे जूनागढ़ ले जाना चाहेगा… हम्ઽઽઽ…. ૐ….. ૐ…. ૐ…. घोड़ी को ऐड़ी मारी । घोड़ी घूमती गयी और तलवार से एक-दो सैनिकों को गिरा दिया । दूसरे सैनिक पकड़ने की कोशिश तो कर रहे थे लेकिन डर के मारे नजदीक नहीं आर रहे थे । घोड़ी उछाल मारते हुए सैनिकों के बीच में से भाग गयी लेकिन सोनबा जानती थी कि सूबेदार मेरा पीछा करेगा । उसने जाकर अपने पिता को बताया ।

मोकल सिंह ने सारी बात समझकर अपने प्रजाजनों से कहाः “क्षत्रिय की कन्या पर अत्याचार, पूरी क्षत्रिय जाति का अपमान है । वह सूबेदार सेना लेकर आयेगा और हमारी छोटी-सी रियासत को कुचलने की कोशिश करेगा लेकिन प्राण कुर्बान करके भी कन्या की धर्मरक्षा करना हमारा कर्तव्य है ।”

“हाँ, हमारा कर्तव्य है ।” सभी ने एक स्वर में कहा और लड़ने का निर्णय किया ।

गाँव वालों ने रास्ते पर काँटों की बाड़ कर दी । परंतु छोटी-सी रियासत को कुचलना सूबेदार के लिए क्या बड़ी बात थी ! रणभेरी बजा दी । हाथी ने सब इधर-उधर कर दिया । उसकी सेना ने पूरे गाँव को घेर लिया । खन… खन…. खन…. तलवारें चलने लगीं । सूबेदार के सैनिक कटने लगे ।

आखिर सूबेदार ने कहाः “ये मनोबल से मजबूत हैं । गोलियाँ चलाओ । इनके पास बंदूकों की व्यवस्था नहीं है । तलवार और बंदूक की लड़ाई में तो बंदूक ही जीतेगी ।” धड़-धड़-धड़ सेंदरड़ा गाँव के मुट्ठीभर सैनिक बलि चढ़ते देख सोनबा ने पिता जी से कहाः “पिता जी ! आप संधि का झंडा फहराइये ।”

“संधि ! वह दुष्ट आकर तुझे ले जायेगा ।”

“पिता श्री ! मैं आपकी कन्या हूँ । आप जरा भी संदेह नहीं रखिये । अपने कुल की प्रतिष्ठा को हानि पहुँचे ऐसा मैं कभी नहीं करूँगी । इस समय उनके पास बंदूकें हैं और हमारी सेना के पास बंदूकें नहीं हैं । इस समय बल से शत्रुओं के साथ हम नहीं जीत पायेंगे, बुद्धि से जीतना पड़ेगा ।”

शास्त्र कहते हैं – उद्यम, साहस, धैर्य तो हो लेकिन बुद्धि का उपयोग भी हो । ये तीन सदगुण हैं और बुद्धि नहीं है तो मारे जायेंगे । सोनबा ने पिता के कान में कुछ बात कह दी ।

पिता ने झंडा दिखाया कि हम आपसे लड़ना नहीं चाहते । सूबेदार ने देखा कि जब ये डर गये हैं और संधि करना चाहते हैं तो कोई हर्ज नहीं है ।

वह  बोलाः “मुझे तो बस वह सुंदरी चाहिए ।”

सोनबा के पिता ने कहाः “तुमने इस छोटी-सी बात के लिए नरसंहार करवाया ! तुम बोलते तो हम तुम्हारे जैसे सूबेदार के साथ अपनी बेटी का रिश्ता खुशी-खुशी कर देते । अब हमारी कन्या का विवाह तो हम तुमसे ही करेंगे लेकिन हमारे रीति-रिवाज के हिसाब से । अभी सिंहस्थ का साल है । इस सिहंस्थ में अगर विवाह करेंगे तो कन्या विधवा होकर लौटेगी । सिंहस्थ के बाद धूमधाम से विवाह करेंगे ।”

सूबेदारः “अच्छी बात है ।”

वह मूर्ख खुश हो गया ।

मोकल सिंह ने कहाः “देखो सूबेदार जी ! हमारी रीति रिवाज के अनुसार कन्या को सुमुहूर्त चढ़ाना चाहिए ।”

सुमुहूर्त मतलब क्या ?”

मोकल सिंह ने कहाः “वर पक्ष की ओर से कन्या को हीरे मोती के गहने तथा कीमती कपड़े आदि भेजने का रिवाज है । इसको हमारे यहाँ सुमूहूर्त कहते हैं ।”

सूबेदारः “हमको क्या कमी है ! जूनागढ़ जाकर सब भेज देंगे । अभी तो ये नकद दस हजार सोने की मोहरें रख लो ।” और फिर सूबेदार चल पड़ा जूनागढ़ ।

जिस जगह सूबेदार के साथ भिडंत हुई थी वहाँ सोनबा अपने कुटुम्बी लोगों को लेकर गयी और बोलीः “हमें यहाँ बावड़ी खुदवानी है । मनुष्यों और गाय-भैंसों के लिए पानी की किल्लत है ।” बावड़ी का काम शुरु हुआ ।

कुछ दिन बीते । एक राजपूत चिट्ठी लेकर सूबेदार के पास पहुँचा । चिट्ठी में लिखा था कि ʹकुंवरी साहेबा तीर्थयात्रा को जा रही हैं । तीर्थयात्रा में सखियाँ, सहेलियाँ भी जायेंगी, 20 हजार सोना-मोहरें दे दो ।ʹ

“अरे, 20 क्या 25 हजार ले जाओ । ऐसी वीरांगना मिलेगी मुझे !”

25 हजार सोना-मोहरें दे दीं मूर्ख ने ।

सोनबा ने पहले की 10 हजार और अब की 25 हजार सोने की मोहरें सूबेदार की मौत के लिए बावड़ी खुदवाने में लगा दी, जिसमें नीचे तलघर बनवाया । उसकी बनावट ऐसी थी कि ऊपर से पानी की बावड़ी दिखे लेकिन नीचे पूरा गाँव आ जाय ताकि सेंदरड़ा गाँव के लोग गुप्त रूप से रह सकें और कभी शत्रु आये तो उसे पता भी नहीं चले की कहाँ से कौन निकलकर आया । सोनबा ने बड़ी चतुराई से ऐसी बावड़ी खुदवायी क्योंकि उसके पास गुरुमंत्र था, ध्यान था । सुबह उठती तो ललाट पर भ्रूमध्य में ध्यान करती तो उसको अंतरात्मा की ऐसी प्रेरणा मिलती रही कि बड़े-बड़े साजिशकर्ता भी ठोकर खा गये ।

जब वर्ष पूरा होने को आया तब सूबेदार ने कहलवाया कि अब शादी के लिए तैयारी करो । मोकल सिंह ने कुछ टेढ़ी-मेढ़ी बात सुना दी कि ʹसोनबा से शादी करना माना कब्र में जाना है ।ʹ

“हं….. मेरे लिए छोटे से गाँव का मुखिया ऐसा बोल जाये !….” सूबेदार ने सेना तैयार की और सेंदरड़ा गाँव के नजदीक आकर पड़ाव डाला । “एक बार संधि कर चुके हो, क्या फिर से मौत के घाट उतरना चाहते हो ? हा…. हा…. हा….”

धैर्य तो है इसके पास लेकिन तामसी धैर्य है । रात को शराब पी, मांस खाया और सोचने लगा कि ʹसुबह इन पर अपन सफल हो जायेंगे…ʹ राजसी धृति है । ʹऔर चाहिए, और चाहिए….ʹ – लगे रहते हैं लोभी लोग । ये दोनों धृतियाँ व्यक्ति को डुबाती हैं ।

श्रीकृष्ण कहते हैं सात्त्विक धृति चाहिए । ईश्वर के रास्ते दृढ़ता से चलो । चाहे कितने विघ्न आयें लेकिन अपने कर्तव्य को, अपने धर्म को, जप-अनुष्ठान को मत छोड़ो, अपने गुरु के ज्ञान को न छोड़ो । यह सात्त्विक धृति है ।

सोनबा में सात्त्विक धृति थी और उस सूबेदार में तामसी और राजसी धृति थी कि ʹअभी तो धैर्य रखें, सुबह होते ही इनका कचूमर बना देंगे और सुंदरी को बलपूर्वक ले चलेंगे ।ʹ

सूबेदार ने हुक्म दियाः “चारों तरफ ऐसा कड़ा पहरा लगाओ की आदमी तो क्या एक चिड़िया भी बाहर न निकल सके ।”

मध्यरात्रि को जवानों का एक टोला आया चमचमाती तलवारों के साथ और सूबेदार के कई सैनिकों की मुंडियाँ धड़ से अलग करके गायब हो गया । यवन सैनिकों ने खोजा तो कोई मिले नहीं !

ʹचारों तरफ मेरी सेना… इतना कड़ा पहरा…. देखते ही गोली मारो का आदेश… फिर भी इतने सारे जवान कहाँ से आये और गये कहाँ !!”

उनको पता ही नहीं कि जहाँ ठहरा है वही तलघर से आये और तलघर में चले गये । नशेबाजों को क्या पता चले !

सुबह हुई । सूबेदार ने चढ़ाई कर दी । सेंदरड़ा गाँव को घेर लिया । हाथी की टक्कर से दरवाजा टूटा । घुसे अंदर, तो क्या देखते हैं कि लोग हैं ही नहीं !

“सेंदरड़ा के लोग कहाँ गये ? दरवाजे बंद करके छुप गये क्या ? दरवाजे तोड़ो !”

घर-घर के दरवाजे तोड़े तो सारे घर खाली ! पूरा सेंदरड़ा खाली !! सूबेदारः “लगता है डर के मारे भाग गये । मुखिया के घर में जाओ । उस सुंदरी को तो ले चलेंगे ।”

न सुंदरी मिली न सुंदरा मिला…. धक्के खाते-खाते निराश होकर अपने पड़ाव पर आये । छावनी में आकर देखा तो दुश्मन अचानक हल्ला करके भाग गया है । कई सैनिक मारे गये हैं, कई घायल अवस्था में पड़े हैं । सोचने लगे, ʹक्या कारण है ? बंदूकें हमारे पास, उनके पास कोई बंदूक नहीं फिर भी हम मौत के घाट उतार दिये जा रहे हैं । हम उपाय खोजेंगे धीरज से ।ʹ

उपाय तो खोज रहे हैं लेकिन तामसी बुद्धि से । प्याली पी, सोये…. नींद तो क्या आनी थी, मौत आनी थी । सोनबा और सैनिक तलघर से निकले और धाड़-धाड़ हमला कर दिया । वे तो शराबी थे । वे बंदूकें सँभालें उसके पहले सोनबा ने उनको सँभला दिया…. किसी को भाला तो किसी को तलवार की नोंक । एक अकेली सोनबा और मुट्ठीभर सैनिक !

सोनबा सूबेदार के तम्बू में घुस आयी और गरज पड़ीः “तुझे सोनबा चाहिए थी न ? मैं आ गयी हूँ मूर्ख !” और भाला सीधा उसकी छाती में घुसेड़ दिया । किसकी ? जो सोनबा को अपनी बेगम बनाना चाहता था । बाकी के सैनिक जान बचाकर भाग गये ।

भावनगर जिले के सोनगड़ के पास सेंदरड़ा गाँव के नजदीक सोनबा ने जो बावड़ी खुदवायी थी, वहाँ बसा गाँव आज भी उस संयमी, सदाचारिणी, वीर कन्या की यशोगाथा की खबर दे रहा है । उस कन्या के सत्संग, साहस, धैर्य, गुरुभक्ति और संयमी जीवन की खबर दे रहा है । वह आजीवन ब्रह्मचारिणी रही । जैसे मीरा ने परमेश्वर को वर बनाया, ऐसे ही उस कन्या ने परब्रह्म परमात्मा को ही वर बनाया ।

एक कन्या में कितनी शक्ति छुपी है ! इतना बड़ा सूबेदार, इतने सारे सैनिक, इतनी सारी बंदूकें… ये बेचारे छोटी-मोटी लाठियों तलवारों से उनका मुकाबला क्या करें ! सोनबा ने युक्ति खोजी और गुरुकृपा से उसे सूझ गयी । दुष्ट को कैसे धैर्यपूर्वक यमपुरी में पहुँचाया जाता है और अपने आत्मा को परमात्मा में कैसे पहुँचाया जाता है, इसकी सीख सोनबा ने सदगुरु से पा ली थी । सोनबा अपने को शरीर नहीं मानती थी । शरीर पंचभौतिक है, इसको स्वस्थ रखो, संयमी रखो लेकिन भीतर से जानो कि ʹशरीर की बीमारी मेरी बीमारी नहीं है । मन का दुःख मेरा दुःख नहीं है, चित्त की चिंता मेरी चिंता नहीं है । संसार सपना है, उसको चलाने वाला चैतन्य परमात्मा अपना है । ૐ…..ૐ…..ૐ…..

इस कथा से भगवान की यह बात स्पष्ट समझ में आ सकती है की तामसी और राजसी धैर्यवाला तुच्छ चीजों के लिए धैर्य धारण करता है । ऐसे तो बगुला भी मछली के शिकार के लिए धैर्यवान दिखता है अथवा तो कोई प्रेमी, प्रेमिका को फँसाने के लिए धैर्यपूर्वक लगा रहता है, प्रेमिका प्रेमी को उल्लू बनाने के लिए लगी रहती है लेकिन ये सारे धैर्य तुच्छ हैं । जो अपने आत्मा-परमात्मा के स्वभाव को पाने के लिए धैर्यवान होकर लग जाता है, उसका धैर्य सात्त्विक है । वह सात्त्विक धैर्यवान व्यक्ति अपने जीवनदाता के सुख, शांति, माधुर्य और सामर्थ्य को पा लेता है ।

3 thoughts on “संयमी सोनबा”

  1. vishakha kulkarni
    February 3, 2022 at 2:38 pm

    awesome and inspiring story for youths…👍👍

    Reply
  2. Shweta Govindrao Sevankar
    February 3, 2022 at 4:30 pm

    Very nice informational and useful story

    Reply
  3. snparihar140886@gmail.com
    February 5, 2022 at 10:31 am

    Bahut achi kahani nari tu narayani he jay ho

    Reply

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