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सौन्दर्य प्रसाधनों में छिपी हैं कई मूक चीखें

‘सौन्दर्य-प्रसाधन’ एक ऐसा नाम है जिससे प्रत्येक व्यक्ति परिचित है । गरीबी की रेखा से नीचे का जीवन जीने वालों को छोड़कर समाज के सभी वर्ग सौन्दर्य प्रसाधनों का उपयोग करके अपने को भीड़ में खूबसूरत तथा विशेष दिखाने की होड़ में रहते हैं । सौन्दर्य प्रसाधनों का प्रयोग करके अपने को खूबसूरत तथा विशेष दिखने वाले होड़ में आज सिर्फ नारी ही नहीं, वरन् पुरूष भी पीछे नहीं हैं । समाज का कोई भी आयु वर्ग इनकी गुलामी से नहीं बचा है ।

हम विभिन्न प्रकार के तेल, क्रीम7ॉ, शैम्पू एवं इत्र आदि लगाकर भीड़ में अपने को आकर्षक बनाना चाहते हैं । परन्तु इसी आकर्षण की होड़ में हमने समाज में व्यभिचार एवं शोषण को भी महत्त्वपूर्ण स्थान दे दिया है । विषयलोलुपता बनती हमारी वर्त्तमान युवा पीढ़ी के पतन के पीछे इन सौन्दर्यों प्रसाधनों का भी एक महत्त्वपूर्ण स्थान है ।

आकर्षक डिब्बों तथा बोतलो आदि की पैकिंग में आने वाले प्रसाधनों की कहानी इतनी ही नहीं है । सच तो यह है कि इसकी वास्तविकता का हमें ज्ञान ही नहीं होता । हजारों लाखों निरपराध बेजुबान प्राणियों की मूक चीखें इन सौन्दर्य प्रसाधनों की वास्तविकता है । मनुष्य की चमड़ी को खूबसूरत बनाने के लिए कई निर्दोष प्राणियों की हत्या…. यही इन प्रसाधनों की सच्चाई है । जिस सेंट को छिड़ककर मनुष्य स्वयं को विशेष तथा आकर्षक दिखाना चाहता है उसके निर्माण के लिए लाखों बेजुबान प्राणियों की हत्या की जाती है ।

सेंट उत्पादन के लिए मारे जाने वाले प्राणियों में बिज्जू का नाम भी आता है । बिज्जू बिल्ली के आकार का एक नन्हा सा प्राणी है । इसे सेंट उत्पादन के लिए पकड़ा जाता है । बिज्जू से जिस प्रकार से सेंट प्राप्त किया किया जाता है वह क्रिया जल्लादी से कम नहीं । बिज्जू को बेंतो से पीटा जाता है । बेंतों एवं कोड़ों की मार सहता यह प्राणी चीखता हुए भी अपनी कहानी किसी भी अदालत में नहीं सुना पाता । अत्यधिक मार से उद्विग्न होकर बिज्जू की यौन-ग्रन्थि से एक सुगन्धित पदार्थ स्रावित होता है । इस पदार्थ को तेज धारवाले चाकू से निर्ममता से खरोंच लिया जाता है जिसमें कैमिकल मिलाकर विभिन्न प्रकार के इत्र बनाये जाते हैं ।

मूषक के आकार का बीबर नामक प्राणी भी इसी उत्पादन के लिए तड़पाया जाता है । बीबर से केस्टोरियम नामक गन्ध प्राप्त होती है । बीबर के शरीर से प्राप्त होने वाला तेल भी सौन्दर्य प्रसाधन के निर्माण में काम आता है । बीबर को पकड़कर उसे 15-20 दिनों तक एक जाली में बन्द करके तड़पाया जाता है । जब भूखा-प्यासा एवं नाना प्रकार के संत्रास सहता यह प्राणी अपनी जान गँवा बैठता है, तब इसके शरीर से प्राप्त गंध का उपयोग मनुष्य अपनी गन्ध-तृप्ति के लिए करता है ।

मनुष्य की घ्राणेन्द्रिय की परितृप्ति के लिए ही बिल्ली की जाति के सीवेट नाम के प्राणी की भी जान ले ली जाती है । हिन्दी में इसे गन्ध मर्जार के नाम से भी जाना जाता है । माना जाता है कि सीवेट जितना क्रोधित आता है उससे उतनी ही अधिक तथा उत्तम गन्ध प्राप्त होती है । अतः इसे एक पिंजरे में डालकर इस प्रकार से सताया जाता है कि इसकी करूणा चीखों से प्रकृति भी से पड़ती होगी । इस प्रकार मानव के जुल्मों को सहते-सहते यह प्राणी अपनी जान से हाथ धो बैठता है । तब उसका पेट चीरकर उससे वह ग्रन्थि निकाल ली जाती है, जिसमें गन्ध एकत्रित होती है तथा आकर्षक डिजाइनों में इसे सौन्दर्य प्रसाधनों की दुकानों पर रख दिया जाता है ।

लेमूर जाति के लोरिस नामक छोटे बंदर को भी उसकी सुन्दर आँखों एवं जिगर के लिए मारा जाता है जिन्हें पीसकर सौन्दर्य प्रसाधन बनाये जाते हैं ।

पुरूष अपनी दाढ़ी बनाने के लिए जिन लोशनों का उपयोग करता है, उसके लिए भी गिनी पिग नामक एक प्राणी की जान ली जाती है । गिनी पिग चूहों की जाति का एक छोटा-सा प्राणी है । यह विश्वभर में पाया जाता है । मनुटष्य की दाढ़ी बनाने के लिए निर्मित साबुन (सेविंग लोशन) की संवेदनशीलता की जाँच का प्रयोग इस प्राणी पर किया जाता है क्योंकि इसकी त्वचा का कोमल तथा रोयेंदार होती है । लोशन से मनुष्य की त्वचा को कोई हानि न पहुँचे इसलिए उस लोशन को पहले गिनी पिग पर आजमाया जाता है । इस प्रकार त्वचा के रोग अथवा तो रासायनिक दुष्प्रभाव (कैमिकल रिएक्शन) के कारण हजारों गिनी तड़प-तड़पकर मर जाते हैं ।

बाजारों में रासायनिक पदार्थों से बने कई प्रकार के शैम्पू मिलते हैं जिनका प्रयोग मनुष्य अपने केशों को सुन्दर एवं चमकदार बनाने के लिए करता है । परन्तु शायद आप नहीं जानते कि उनमें खरगोश का अंधत्व एवं उसकी मौत घुली हुई है ।

जैसा कि स्पष्ट है, शैम्पू कई प्रकार के रसायनों से बनाया जाता है । अतः इनका उपयोग करने वाले मनुष्य की कोमल आँखों को शैम्पू से कोई हानि न पहुँचे, इसके लिए उसका परीक्षण किया जाता है । इस परीक्षण के लिए एक निर्दोष प्राणी खरगोश को बलि की बेदी पर चढ़ाया जाता है । शैम्पू को बाजार में लाने से पहले खरगोश की नन्हीं सी आँखों में डाला जाता है । इससे खरगोश को कितनी वेदना होती होगी, उसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते । इस क्रिया के लिए उसे बाँध लिया जाता है । खरगोश की आँखें खुली रहें इसके लिए ‘आई ओपनर्स’ का उपयोग किया जाता है तथा खरगोश की आकर्षक आँखों में शैम्पू की बूँदे डाली जाती हैं । इससे खरगोश की आँखों से खून निकलने लगता है क्योंकि मनुष्य खरगोश को उसकी खाल के लिए भी मारता है अतः उस तड़पते हुए प्राणी का इलाज करने की भी आवश्यकता नहीं होती जिससे वह स्वतः ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है ।

अपनी इन्द्रियों की तृप्ति के लिए मानव इन निर्दोष प्राणियों पर जो कहर पा रहा है, यह उसकी एक झलक मात्र है । यह पूर्ण अध्याय नहीं, परन्तु पूर्ण अध्याय की हम कल्पना कर सकते हैं कि अपनी इन्द्रिय-लोलुपता की महत्त्वकांक्षा में हम कितना बड़ा घृणित पापकर्म कर रहे हैं ।

ईश्वर से मनुष्य शरीर तथा सर्व प्राणियों में श्रेष्ठ बुद्धि हमें इसलिए मिली है ताकि परमात्मा की सृष्टि को सँवारने में भागीदार बन सकें । वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना से सबकी सेवा करके सबमें बसे उस वासुदेव को प्राप्त कर लें तथा उसी के हो जायें । सबमें उसी का दर्शन करके उसीमय हो जायें ।

तो आज से हम संकल्प करें कि जिन सौन्दर्य प्रसाधनों में हजारों-लाखों निर्दोष बेजुबान प्राणियों की दर्दनाक मृत्यु की गाथा छिपी है, उन सौन्दर्य प्रसाधनों का त्याग करेंगे व करवाएँगे । लाखों प्राणियों की आह लेकर बनाये गये सौन्दर्य प्रसाधनों से नहीं, वरन् सत्संग एवं सदगुणों से अपने शाश्वत सौन्दर्य को प्राप्त करेंगे । सबमें उसी राम का दर्शन कर श्रीराम, श्रीकृष्ण, रामतीर्थ, विवेकानन्द, लीलाशाहजी बापू तथा मीरा, मदालसा, गार्गी, अनुसूया, सावित्री और माता सीता की तरह परम सौन्दर्यवान् हो जाएँगे ।

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