सोंठ के लाभ
अदरक का छिलका हटाकर उसे १०-१२ दिन धूप में सुखाने से सोंठ बन जाता है । अदरक तीखा, रुखा, उष्ण व तीक्ष्ण होने के कारण कफ तथा वायु का नाश करता है व पित्त को बढ़ाता है । सोंठ अपने उष्ण गुण से कफ- वायु का तो नाश करती है परंतु स्निग्ध व मधुर गुणों से पित्त को बढ़ने नहीं देती व् दूषित पित्त को स्वच्छ कर देती है ।
सोंठ का सर्वश्रेष्ठ गुण है आमपाचन । आहार का सम्यक पाचक न होने के कारण जो विकृत आहार रस (आम) उत्पन्न होता है, वही सभी व्याधियों का मूल है । सोंठ इस विकृत आहार रस का पाचन कर व्याधि को जड़सहित नष्ट करने में सहायभूत होती है यह ह्रदय- दौर्बल्य, हृदयशूल में विशेष लाभदायी है ।
औषधि- प्रयोग
आमदोष :
– २ ग्राम सोंठ १०० मि.ली.पानी में आधा पानी शेष रहने तक उबालें । यह सोंठ सिद्ध जल कुछ दीनों तक सुबह खाली पेट नियमित लेने से आमदोष नष्ट हो जाता है ।
सायटिका :
– २ ग्राम सोंठ १०० मि.ली. पानी में उबाले।एक चौथाई पानी शेष रहने पर १० से २० मि.ली. अरण्डी का तेल मिलाकर सुबह सूर्योदय के बाद लें।यह प्रयोग सायटिका में बहुत लाभदायी है ।
अम्लपित्त :
– भोजन के बाद सोंठ, आवलाँ व मिश्री का समभाग मिश्रण (५ ग्राम) लेने से अम्लपित्त में लाभ होता है ।
खाँसी व श्वास :
– सोंठ, छोटी हरड़ व नागरमोथ के समभाग मिश्रण को गुड में मिलाकर २-२ ग्राम की गोली बना लें। यह गोली चूसने खाँसी- श्वास में आराम मिलता है ।
– सोंठ को जलाकर राख बनायें । आधा चम्मच राख शहद में मिलाकर चाटने से श्वास (दमा) के वेग में राहत मिलती है ।
जुकाम :
– १ ग्राम सोंठ, १ ग्राम दालचीनी व मिश्री को १०० मि.ली. पानी में उबालकर लेने से लाभ होता है ।
कृमि :
– सोंठ व वायविडंग के समभाग मिश्रण में गुड़ मिलाकर २- २ ग्राम की गोली बनायें। १ से २ गोली सुबह खाली पेट गुनगुने पानी के साथ लें। १५ दिन में पेट के कृमि नष्ट हो जायेंगे |
प्रसवोत्तर :
– प्रसूति के बाद होनेवाले वायुप्रकोप व दुर्बलता को नष्ट करने के लिए सोंठ से बना ‘सौभाग्य- शुंठी पाक’ सुबह- शाम दूध के साथ लें । सौभाग्य- शुंठी पाक बनाने की विधि ‘ऋषि प्रसाद’ अंक १५५ में दी गयी है । बनाया हुआ पाक भी आश्रम की सेवा समितियों में मिल सकेगा । इससे दूध खुलकर आता है। जठराग्नि तथा बल की वृद्धि होती है व संभावित कई वातविकारों से रक्षा होती है ।
– सोंठ व अश्वगंधा को समान मात्रा में मिलाकर लेना डायबिटीज के रोगी के लिए विशेष लाभदायी है ।
सावधानी :
– कुष्ठरोग, रक्तपित्त, पांडूरोग व ग्रीष्म तथा शरद ऋतु में सोंठ का उपयोग नहीं करना चाहिए ।