तिलक और त्रिकाल संध्या
ललाट पर दोनों भौहों के बीच विचार शक्ति का केन्द्र है । योगी इसे’आज्ञाचक्र’कहते हैं । इसे शिवनेत्र अर्थात् कल्याणकारी विचारों का केन्द्र भी कहा जाता है । ललाट पर तिलक करने से आज्ञाचक्र और उसके नजदीक की शीर्ष (पीनियल) और पीयूष (पिट्यूटरी) ग्रंथियों को पोषण मिलता है । यह बुद्धिबल व सत्त्वबलवर्धक है तथा विचारशक्ति को भी विकसित करता है । अतः तिलक लगाना आध्यात्मिक तथा वैज्ञानिक – दोनों दृष्टिकोणों से बहुत लाभदायक है । कोई भी शुभ कार्य करते समय ललाट पर तिलक करें ।
- पाश्चात्य कल्चर की चकाचौंध में लोग अपनी संस्कृति व शास्त्रों से विमुख हो इस सूक्ष्म विज्ञान से दूर होते जा रहे थे । अतः लोगों को तिलक लगाने के लिए प्रोत्साहित करने की कई युक्तियाँ अपनाते हुए पूज्य बापू जी ने इस लुप्त होती परम्परा को पुनर्जीवित किया है ।
- ब्रह्मवैवर्त पुराणः (ब्र. खं.- 26.73) में आता है कि
स्नानं दानं तपो होमो देवता पितृकर्म च । तत्सर्वं निष्फलं यादि ललाटे तिलकं विना । ।
‘बिना तिलक लगाये स्नान, दान, तप, हवन, देवकर्म, पितृकर्म – सब कुछ निष्फल हो जाता है ।’
- ललाट पर तिलक करने से शिवनेत्र विकसित होता है । वैज्ञानिक अभी चकित होकर प्रशंसा करते है ।
- हमारे शरीर में 7 केन्द्र हैं, भ्रूमध्य में छठा केन्द्र है । यह केन्द्र जितना विकसित होता है, उतना पाँचों केन्द्र विकसित होने का फायदा होता है । तिलक करने से सौंदर्य, तेज, सूझबूझ तो बढ़ती ही है, साथ में शरीर के पाँचों केन्द्रों का राजा – आज्ञाचक्र लोक परलोक सँवारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है ।
- कोई अच्छा काम, कोई शुभ कर्म करते हैं तो उस समय बुद्धिमान ब्राह्मण’ॐगणानां त्वा गणपतिँ हवामहे…’ कह के ललाट पर तिलक करते हैं । तिलक क्यों करते हैं, कि मांगलिक कार्य है, कुछ बड़ा कार्य है तो भावना के साथ तुम्हारे विचार विकसित हों तथा तुम्हारे शुभ कर्म तुम्हें सूझबूझ और समता की ऊँचाई पर ले जायें । कितना वैज्ञानिक है हिन्दू धर्म!
- तिलक करने का वैज्ञानिक कारण
- चूना या नींबू के रस और हल्दी का मिश्रण अथवा चंदन आदि का तिलक करने से वहाँ जमा जो रक्त है वह बिखरता है और नये रक्त के आने की सुविधा बनती है । जैसे ताजा पानी प्रफुल्लितता देता है, ऐसे नया रक्त उन्नत विचार और बढ़िया स्मृति में मदद करता है ।
- ललाट पर नियमित रूप से तिलक करते रहने से मस्तिष्क के रसायनों – सेरोटोनिन व बीटा एंडोर्फिन का स्राव संतुलित रहता है, जिससे मनोभावों में सुधार आकर उदासी दूर होती है, सिरदर्द नहीं होता तथा मेधाशक्ति तीव्र होती है ।
- महिलाओं द्वारा भ्रूमध्य एवं माँग में केमिकलरहित शुद्ध सिंदूर या कुमकुम लगाने से मस्तिष्क संबंधी क्रियाएँ नियंत्रित, संतुलित तथा नियमित रहती हैं एवं मस्तिष्कीय विकार नष्ट होते हैं लेकिन आजकल जो केमिकलयुक्त बिंदियाँ, सिंदूर, कुमकुम चल पड़े हैं वे लाभ के बजाये हानि करते हैं । ये चिड़चिड़ापन लायेंगे, गलत निर्णय लायेंगे ।
किस उँगली से तिलक करें ?
- ‘स्कन्द पुराण’में आता है कि अनामिका शांतिदा प्रोक्ता मध्यमायुष्करी भवेत् ।
अंगुष्ठः पुष्टिदः प्रोक्ता तर्जनी मोक्षदायिनी । ।
अनामिका से तिलक करने से सुख-शांति, मध्यमा से आयु, अँगूठे स्वास्थ्य और तर्जनी से मोक्ष की प्राप्ति होती है ।”
किससे तिलक करें ?
- सामान्यतया चंदन, कुमकुम, हल्दी, यज्ञ की राख, गोधूलि, तुलसी या पीपल की जड़ की मिट्टी आदि का तिलक लगाया जाता है । चंदन का तिलक लगाने से पापों का नाश होता है, व्यक्ति संकटों से बचता है, उस पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है, ज्ञानतंतु संयमित व सक्रिय रहते हैं ।
- कुमकुम में हल्दी व नींबू के रस का संयोजन होने से त्वचा को शुद्ध रखने में सहायता मिलती है और मस्तिष्क के स्नायुओं का संयोजन प्राकृतिक रूप में हो जाता है । संक्रामक कीटाणुओं को नष्ट करने में शुद्ध मिट्टी का तिलक महत्त्वपूर्ण योगदान देता है । यज्ञ की भस्म का तिलक करने से सौभाग्य की वृद्धि होती है । ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तिलक लगाने से ग्रहों की शांति होती है ।
- पूज्य श्री कहते हैं-“देशी गाय की चरणरज (गोधूलि) का तिलक करने से भाग्य की रेखायें बदल जाती हैं । ब्रह्मवैवर्त पुराण (श्रीकृष्णजन्म खंडः 21.94) में आता हैः
गोष्पदाक्तमृदा यो हि तिलकं कुरुते नरः ।
तीर्थस्नातो भवेत्सद्यो जयस्तस्य पदे पदे । ।
- ‘गौ के पैरों की मिट्टीका तिलक जो मनुष्य अपने मस्तक में लगाता है, वह तत्काल तीर्थजल में स्नान करने का पुण्यफल प्राप्त करता है और पग-पग पर उसकी विजय होती है ।’
- अगर तिलक चंदन का हो जाय तो अच्छा है नहीं तो फिर तुलसी की मिट्टी का भी कर सकते हो । नहीं तो हल्दी और नींबू का रस या चूने का चूर्ण मिलाकर उसका तिलक करें । थोड़ी सनसनाहट होगी लेकिन इससे छठा केन्द्र जल्दी विकसित हो जायेगा । मैंने किया हुआ है । फिर आपके निर्णय भी अच्छे होंगे, सूझबूझ भी अच्छी बन जायेगी । अगर वह नहीं है तो स्नान के बाद जल का ही तिलक कर सकते हो और वह भी भूल गये तो कार्य करते समय तिलक की भावना करके भगवन्नाम सुमिरन करते भृकुटी पर केवल उँगली से तिलक करोगे तब भी कुछ प्राणशक्ति ऊपर को आयेगी, आपके शुभ संकल्प और व्यवहार में सहायक बनेगी ।
महिलाओं को तिलक करने हेतु प्रेरित किया
- ऋषियों ने कितना सुंदर खोजा कि स्त्रियां गर्भधारण करती हैं, बच्चे को जन्म देने की उनमें कुदरती योग्यता है तो अधिकांश स्त्रियों का मन और प्राण स्वाधिष्ठान और मणिपुर केन्द्र (नाभि केन्द्र) में ज्यादा रहते हैं । इससे पुरुषों की अपेक्षा माइयों में श्रद्धा का सदगुण ज्यादा होता है, संशय व भय भी ज्यादा रहता है । एक जरा सा चूहा पसार हुआ तो हड़बड़ायेंगी-“मैं तो डर गयी ! मैं तो मर गयी, हाय !….’
- स्वाधिष्ठान और मणिपुर केन्द्रों में भय, भावना आदि की अधिकता होती है इसलिए स्त्रियों को हररोज तिलक करने की आज्ञा शास्त्रों ने दी है । मस्तक पर बिंदिया अथवा तिलक लगाने से चित्त की एकाग्रता विकसित होती है तथा मस्तिष्क में पैदा होने वाले विचार असमंजस की स्थिति से मुक्त होते हैं ।
प्लास्टिक की बिंदियों से किया सावधान
- आजकल माइयों के साथ अन्याय हो रहा है । छठा केन्द्र विकसित हो इसलिए तिलक करते हैं । इससे तेज, शोभा, प्रसन्नता, बल, उत्साह बढ़ता है लेकिन उसकी जगह पर उत्साह बल, तेज को दबाने वाला, मृत पशुओं के अंगों से बनाया हुआ घोल बिंदी चिपकाने के लिए लगा देते हैं । तेज बढ़ाने की जगह पर तेज को कुंठित कर देना….. यह कैसा है!
- गृहिणी आजकल ठगी जाती है । प्लास्टिक की बिंदी लगाती है । ललाट में तिलक करने से शिवनेत्र (आज्ञाचक्र) विकसित होता है जबकि प्लास्टिक की बिंदियों में जानवरों के अंगों से बना सरेस द्रव्य डाला जाता है जो हानि करता है । मरे हुए, कराहते हुए, तड़पते हुए, बीमार जानवरों के अंगों का उपयोग चिपकाने वाली बिंदी में होता है और उसे अपने भाग्य पर लगाना!गृहिणियों को बहुत घाटा होता है । अतः इसे दूर से ही त्याग दें ।” अधिकांश बाजारू सिंदूर या कुमकुम कृत्रिम हानिकारक रसायनों से बनाये जाते हैं । प्राकृतिक पदार्थों से बनाया गया सिंदूर या कुमकुम ही लाभ करता है ।
यही मेरी गुरुदक्षिणा है
- पूज्य श्री कभी भी दक्षिणा के रूप में फूल की पँखुड़ी तक नहीं लेते हैं परंतु सत्संग में महिलाओं के हित के लिए उनसे दक्षिणा के रूप में अनोखा वचन लेते हैं । पूज्य बापू जी कहते हैं-“जो प्लास्टिक की बिंदी नहीं लगाने का वचन देती हैं और बाजारू क्रीम नहीं लगाने का वचन देते हैं, वे हाथ ऊपर करें तो मैं समझूँगा कि मेरे को दक्षिणा मिल गयी ।
- तुलसी या पीपल की जड़ की मिट्टी अथवा गाय के खुर की मिट्टी पुण्यदायी, कार्यसाफल्यदायी व सात्त्विक होती है । उसका या हल्दी या चंदन का अथवा हल्दी-चंदन के मिश्रण का तिलक हितकारी है । ललाट पर प्लास्टिक की बिंदी चिपकाना हानिकारक है, इसे दूर से ही त्याग दें ।
- भाइयों को भी तिलक करना चाहिए । इससे आज्ञाचक्र (जिसे वैज्ञानिक पीनियल ग्रंथि कहते हैं) का विकास होता है और निर्णयशक्ति बढ़ती है ।
- सूर्योदय के समय ताँबे के लोटे में जल लेकर सूर्यनारायण को अर्घ्य देना चाहिए । इस समय आँखें बंद करके भ्रूमध्य में सूर्य की भावना करनी चाहिए ।
- ‘ब्रह्म पुराण’ के अनुसार जो विशुद्ध मन से प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य प्रदान करते हैं,वे अभिलषित भोगों को भोगकर उत्कृष्ट गति को प्राप्त करते हैं । इसलिए प्रतिदिन पवित्र होकर सुन्दर पुष्प-गंध आदि से सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए । सूर्य को अर्घ्य देने से रोगी रोग से मुक्त हो जाता है, धनार्थी धन, विद्यार्थी विद्या एवं पुत्रार्थी पुत्र प्राप्त करता है । जो विद्वान पुरुष मन में जिस इच्छा को रखकर सूर्य को अर्घ्य देता है, उसकी वह इच्छा भलीभाँति पूर्ण होती है ।
- सूर्य को अर्घ्य देने से’सूर्यकिरण युक्त’ जल चिकित्सा का भी लाभ मिलता है ।
- सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय मौन होकरसंध्योपासना करनी चाहिए । संध्योपासना के अंतर्गत शुद्ध व स्वच्छ वातावरण में प्राणायाम व जप किये जाते हैं । दोपहर में बारह बजे के पूर्व व पश्चात 15-15 मिनट के काल में मध्याह्न संध्या की जाती है । इस प्रकार नियमित त्रिकाल संध्या करने वाले को रोजी रोटी के लिए कभी हाथ फैलाना नहीं पड़ता-ऐसा शास्त्रवचन है ।
- ऋषि लोग प्रतिदिन संध्योपासना करने से ही दीर्घजीवी हुए हैं । (महाभारत, अनुशासन पर्व)
- उदय, अस्त, ग्रहण और मध्याह्न के समय सूर्य की ओर कभी न देखें, जल में भी उसका प्रतिबिम्ब न देखें । (महाभारत, अनुशासन पर्व)
1 thought on “तिलक लगाने के लाभ”
हरि ॐ, मुझे बहुत प्रसन्नता है कि मैं बापू जी की शिष्या हूँ और महिला उत्थान मंडल से भी जुड़ पायी। हरि ॐ जी मुझे तिलक लगाने से अलग ही संतुष्टि मिलती है किंतु रोली, कुमकुम सब रासायनिक हैं। मुझे आज ये हल्दी के तिलक के बारे में जानकर अच्छा लगा ।